बीते इन सालों में, भारतीय क्रिकेट टीम को जॉन राइट और रवि शास्त्री जैसे कई प्रतिभाशाली कोच मिले हैं, वहीं कुछ ग्रेग चैपल और कपिल देव जैसे कोच भी भारतीय टीम को मिले हैं जो कोचिंग में उतने महान नहीं हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच का पद सबसे हाई-प्रोफाइल नौकरियों में से एक है।
लेकिन जो चीज इस काम को और भी मुश्किल बना देती है वह है दिग्गज क्रिकेटरों से भरी टीम को सलाह देना। लेकिन भारत के पूर्व मुख्य कोच गैरी कर्स्टन के लिए उनका पहला अनुभव थोड़ा मुश्किल था। वह साल 2007 के अंत में टीम में शामिल हुए थे जिस साल भारत को वनडे विश्व कप में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने यह खुलासा किया कि जब वह टीम से जुड़े थे तो उन्होंने ड्रेसिंग रूम में 'नाखुशी' की हवा महसूस की थी। एमएस धोनी उनमें से एक थे जो ऐसे नहीं थे।
सचिन नहीं थे खुश: गैरी कर्स्टन
गैरी कर्स्टन ने अपने ड्रेसिंग रूम के अनुभव के बारे में बात करते हुए बताया कि, "सचिन शायद मेरे लिए एक हैरान करने वाले व्यक्ति थे, क्योंकि मैं उस समय टीम में शामिल हुआ जब वह काफी दुखी थे। उन्हें लगा कि मेरे पास टीम को सिखाने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन वह अपने क्रिकेट का आनंद नहीं ले रहे थे और वह अपने करियर में एक ऐसे समय में थे जब उन्होंने महसूस किया कि उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए। मेरे लिए उनके साथ जुड़ना और उन्हें यह महसूस कराना महत्वपूर्ण था कि टीम में उनका बहुत बड़ा योगदान था और उनका योगदान उससे कहीं अधिक था जो उन्हें करने की आवश्यकता थी।"
एमएस धोनी टीम के बारे में सोचते थे और सचिन इससे अलग थे : गैरी कर्स्टन
कर्स्टन-धोनी की जोड़ी को हमेशा उस जोड़ी के रूप में जाना जाएगा जिसने भारतीय क्रिकेट को विश्व कप जीतने के अपने बड़े सपने को साकार करने में मदद की। साल 2008 में शुरू हुआ यह जुड़ाव एक बेहतरीन नोट पर खत्म हुआ, हम सबने देखा कि टीम इंडिया ने अपने घरेलू फैंस के सामने वर्ल्ड कप की ट्रॉफी उठाई। कर्स्टन ने स्वीकार किया कि भारत में 'सुपरस्टार' संस्कृति के बीच, क्रिकेटर यह भूल जाते हैं कि उनका काम टीम के लिए प्रदर्शन करना है न कि व्यक्तिगत उपलब्धि हासिल करना और यही वह क्षेत्र था जहां धोनी, तेंदुलकर जैसे खिलाड़ियों से अलग थे। उनकी इस जीत ने सचिन को भी क्रिकेट एंजॉय करके खेलने में काफी मदद की।