पूर्व भारतीय क्रिकेटर और दिल्ली से भाजपा सांसद गौतम गंभीर के पंजाब केसरी के खिलाफ दर्ज कराए गए मानहानि के मुकदमे पर 17 मई को टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि माना की समाचार पत्र द्वारा आपके लिए इस्तेमाल की गई भाषा गलत थी, लेकिन एक सार्वजनिक व्यक्ति को मोटी चमड़ी का होना चाहिए। आप हर बात पर आपत्ति नहीं दर्ज करवा सकते है।
गौरतलब हैं कि लखनऊ सुपर जायंट्स के मेंटोर ने हिन्दी न्यूजपेपर पंजाब केसरी के संपादक आदित्य चोपड़ा और रिपोर्टर अमित कुमार और इमरान खान पर खुद के खिलाफ की गई रिपोर्टिंग में आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाया था। साथ ही गंभीर के वकील ने कहा था कि न्यूजपेपर ने फ़्रीडम ऑफ प्रेस का इस्तेमाल करते हुए गंभीर के नाम को खराब किया है।
इसके अलावा गंभीर ने दिल्ली हाईकोर्ट को पंजाब केसरी से मानहानि के हर्जाने के तौर पर 2 करोड़ रुपये दिलवाने की मांग भी की थी। इसके साथ गंभीर की ओर से कहा गया था कि न्यूजपेपर के संपादक और रिपोर्टर को उनसे बिना किसी शर्त के माफी मांगनी होगी और उनके खिलाफ इस्तेमाल की गई आपत्तिजनक भाषा को रिपोर्ट्स से हटवाना होगा।
बता दें कि पंजाब केसरी ने अपनी न्यूज रिपोर्ट्स में गंभीर को लेकर कई आपत्तिजनक हेडलाइन्स का इस्तेमाल किया था, जिनमें गंभीर को भस्मासुर से लेकर असभ्य राजनेता तक कहा गया था।
आपको इतना संवेदनशील होने की जरूरत नहीं है- दिल्ली हाईकोर्ट
17 मई को इस मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश चंद्र धारी सिंह ने गंभीर के इस मुकदमे पर कोई फैसला नहीं लिया है, और ना ही न्यूजपेपर को आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल के लिए फटकार लगी है। मगर न्यायाधीश चंद्र धारी सिंह ने मामले पर टिप्पणी करते हुए गंभीर को सलाह दी कि, 'कोई भी सार्वजनिक व्यक्ति को मोटी चमड़ी वाला होना चाहिए। सोशल मीडिया पर इस्तेमाल कि गई अभद्र भाषा के लिए हमें भी मोटी चमड़ी का होना पड़ता है। यदि आप सभी लेख पढ़ते हैं, तो आपको महसूस होगा कि रिपोर्टर उस सोशल मीडिया यूजर से पीछे ही है।
कोर्ट ने कहा कि आप जनता के सेवक है, जनता आपको चुनती है, इसलिए आप इतने संवेदनशील नहीं हो सकते।' बता दें कि गंभीर ने न्यूजपेपर पर आरोप लगाया था कि उनके बारे में की गई भ्रामक रिपोर्ट उनके काम पर असर डालती है।